हर धर्म में दान करने का बहुत महत्व माना जाता है। सनातन धर्म में भी दान का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि दान करने से मनुष्य का इस लोक के बाद परलोक में भी कल्याण होता है 

लेकिन आज के बदलते समय में लोगों के लिए दान का अर्थ केवल धन दान तक ही सीमित रह गया है चाहें इसे समय की कमी कहें या कुछ और। दान कर्म को पुण्य कर्म में जोड़ा जाता है।  

भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही दान करने की परंपरा चली आ रही है। हिंदू सनातन धर्म में पांच प्रकार के दानों का वर्णन किया गया है।  

इन पांचो दानों का बहुत महत्व माना जाता है। लेकिन दान करते समय ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार का दान निस्वार्थ भाव से किया जाना चाहिए। 

भूमि दान पहले के समय में राजाओं द्वारा योग्य और श्रेष्ठ लोगों को भूमि दान किया जाता था। यदि सही प्रकार से इस दान को किया जाए तो इसका बहुत महत्व होता है। यदि आश्रम, विद्यालय, भवन, धर्मशाला, प्याउ, गौशाला निर्माण आदि के लिए भूमि दान किया जाए तो श्रेष्ठ रहता है।   

गौदान सनातन संस्कृति में गौ दान को विशेष महत्व माना जाता है। इस दान के संबंध में कहा जाता है कि जो व्यक्ति गौदान करता है, इस लोक को बाद परलोक में भी उसका कल्याण होता है। दान करने वाले व्यक्ति और उसके पूर्वजों को जन्म मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।  

अन्न दान  अन्न दान करना बहुत ही पुण्य का कार्य होता है। यह एक ऐसा दान है, जिसके द्वारा व्यक्ति भूखे को तृप्त कराता है। यह दान भोजन की महत्वता को दर्शाता है। सभी प्रकार की सात्विक खाद्य सामाग्रियां इसमें समाहित हैं।

कन्या दान कन्या दान को महादान कहा जाता है। सनातन धर्म में कन्या दान को सर्वोत्तम माना गया है। यह दान कन्या के माता-पिता द्वारा उसके पाणिग्रहण संस्कार पर किया जाता है। 

विद्या दान विद्या धन का दान गुरु वरिष्ठ सलाहकार योग्य द्वारा प्रदान किया जाता है। इस दान से मनुष्य में  विद्या, विनय औऱ विवेकशीलता के गुण आते हैं। जिससे समाज और विश्व का कल्याण होता है।